100+ Best Impressive Motivational Shayari
इस आलेख के माध्यम से हम motivational shayari, sad shayari, love shayari और attitude shayari जैसे विषय पर हिन्दी शायरी पढ़ेंगे । यह केवल एक आलेख नहीं है आपके लिए शायरी के माध्यम से motivation shayari है जो आपको प्रेरणा भी देगी और attitude shayari आपके स्वभाव बदलाव मे भूमिका बजाएगी ।
Impressive Motivational Shayari

मेरी छत से रात की सेज तक कोई आँसुओं की लक़ीर है
ज़रा बढ के चाँद से पूछना वो उसी तरफ़ से गया न हो ।

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यों कोई बेवफ़ा नहीं होता

वारिसे मुल्के ग़ज़ल रोए तो रो लेने दो
गुस्ले अस्की से हुआ करती है तहरीरे – सुख़न ।

ज़ेफ़र्क ताब क़दम एक मौज ए मैनाव
तकल्लुमश कि बजे चाँदनी में सितार ।

का कहा क़ाबिले – गौर है : “किताब से ग़ज़ल की ज़बान नहीं सीखी जा सकती। ग़ज़ल की ज़बान से चुपके – चुपके किताब तकवीयत पाती है।”

मैं घर से जब चला तो किवाड़ों की ओट में
नर्गिस के फूल चाँद की बाँहों में छुप गए ।

अमूमन आँसू अन्दर से बाहर आँख में आता है, यहाँ आँख से उतर कर दिल की तरफ़
बह गया है । दिशा बदल गई बहने की ।

मुहब्बत की रंगतें जीते हुए वे कभी-कभी उन रंगतों से खेलने भी लगते हैं:
love shayari
यूँ ही बेसबब न फिरा करो ,
कोई शाम घर भी रहा करो
तमाम रात चराग़ों में मुस्कुराती थी
वो अब नहीं है मगर उसकी रोशनी हूँ मैं
रोशनी के लिए जलने की अनिवार्यता भी उनकी मुहब्बत की पहचान का एक रंग है
सांसारिक संघर्षों में ज़िन्दगी के अनुभवों की तल्ख़ी को जब उनके शेर अपनी आँच देते
हैं तो तस्वीर यों बनती हैं
एक दिन तुझसे मिलने ज़रूर आऊँगा
जिन्दगी मुझको तेरा पता चाहिए
न जाने कितने बरस हो गए न देखी बहार यहाँ बहार का न देखना मायूसी और हताशा का पर्याय नहीं है, एक कैफ़ियत भर है
क्योंकि ख़िजाँ से लड़ने का और बहार को वापस ले आने का हौसला नहीं टूटा । इस हौसले
में यह विश्वास जुड़ा हुआ है कि एक दिन वह इबारत लिखूगा ज़रूर, जिसे परिस्थितियों ने
मिटा दिया है
ज़ाहिर है, तारीकियों के तलातुम में जुगनुओं से फतहयाबी हासिल नहीं हुआ करती
लेकिन समन्दर जैसी अज़ीम हस्ती को जुगनू से नकारने का हौसला रखना फतहयाबी की
दिशा में बढ़ाया हुआ कदम है ।
एक श्रोता ने पीछे से आवाज़ लगाई: ” अपने क़द की लम्बाई भी तो देखो मियाँ ! माला
पहनाने के लिए सीढ़ी लगाने की ज़रूरत पड़ती है, तब फिर पाँव फैलाने पर सर तो
टकराएगा ही ।
कभी-कभी उनका श्रोता भी उनसे चुहल कर लेता है । मुम्बई में जब मुझे परिवार
पुरस्कार दिया गया तो कोशिश यह की गई कि किसी बड़े कवि या शायर के हाथों यह
पुरस्कार नन्दन जी को अर्पित किया जाए । इसके लिए डॉ . बशीर बद्र को चुना गया । जब
उनसे अपना कलाम पेश करने की गुज़ारिश की गई तो एक श्रोता ने शुरू में ही फ़रमाइश
कर दी कि “जिन्दगी तूने मुझे… ” ।
इस तरह की चुटकियों में निदा ने उनके रूमानी अन्दाज़ पर भी दोस्ताना चिकोटी काटी
है: “मिज़ाज से रूमानी हैं लेकिन उनके साथ अभी तक किसी इश्क़ की कहानी मंसूब नहीं
हुई । जिस उम्र में इश्क़ के लिए शरीर ज्यादा जाग्रत होता है, वह शौहर बन कर घर- बार के हो जाते हैं । अब जो भी अच्छा लगता है, उसे बहन बना कर रिश्तों की तहज़ीब निभाते हैं । “
जैसे बशीर बद्र ने अपनी शायरी में चुहल से गुरेज़ नहीं किया, उसी तरह उनके हमसुख़न
और समकालीन अदीबों ने भी उनके साथ चुहलबाज़ी की है । सभी जानते हैं कि डॉ . बशीर
बद्र ने अपनी तनहाई को बहलाने के लिए न सिगरेट का सहारा लिया , न शराब का ।
वक़्तगुज़ारी के लिए दूसरे शायरों की बुराई करते भी उन्हें नहीं पाया जाता ।तब फिर
वक़्तगुज़ारी करते कैसे हैं ? इस पर जनाब निदा फ़ाज़ली की टिप्पणी सुन लीजिए: ” वे जहाँ
भी मिलते हैं , अपने नए शेर सुनाते हैं । सुनाने से पहले यही कहते हैं कि भाई, नए शेर हैं ,
कोई भूल – चूक हो गई हो तो बता दो , इस्लाह कर दो । लेकिन सुनाने का अन्दाज़ ऐसा होता है जैसे कह रहे हों : क्यों झक मारते हो – ग़ज़ल कहना हो तो इस तरह कहा करो । “
इस शेर को पढ़िए तो लगता है, दाम्पत्य जीवन के किसी बिम्ब को यथार्थ की धरती से
उठा कर उदात्तता की गोद में बैठा दिया गया है । डॉ . बशीर बद्र अपनी मुहब्बत के इज़हार में परम्परागत प्रतीकों का इस्तेमाल कम, जिन्दगी के अनुभवों , रूपकों और प्रतीकों काइस्तेमाल ज़्यादा करते हैं । लेकिन ये अनुभव, ये बिम्ब समझ में आने वाले बिम्ब होते हैं । दर्द को अन्दर – अन्दर पी जाने की कैफ़ियत बार- बार शायरों ने बयान की है । डॉ . बशीर बद्र दर्द को अन्दर- अन्दर पी जाने का जो मंज़र सामने लाते हैं वह उनकी अनोखी सृष्टि है :
वो मुहब्बत के शायर हैं और उनकी शायरी का एक – एक लफ़्ज़ इसका गवाह है । मुहब्बत का हर रंग उनकी ग़ज़लों में मौजूद है । दिखाई देने वाले रंगों में भी और न दिखाई देने वाले रंगों में भी । पक्के तौर पर उनका पैग़ाम – मुहब्बत है जहाँ तक पहुँचे। कुदरत का पत्ता – पत्ता ,बूटा – बूटा , धूप का हर टुकड़ा, छाया की हर फाँक उनकी मुहब्बत की रंगतें बिखेरती है ।
उनकी इन रंगतों में आशिक़ी के बेपनाह खूबसूरत तसव्वुरात हैं खुशबू की तरह महकते हुए ,तितलियों की तरह चहकते हुए , बादलों की तरह घिरे हुए , फ़सलों की तरह लहकते हुए , एकसे एक बारीक बिम्ब , एक से एक बढ़कर तैरते हुए- से ख़्वाब…!
उनका जवाब मुख़्तसर मगर मानीखेज था : ” क्या करता नन्दन भाई ! बड़ी मुहब्बत से
उन लोगों ने महीनों पहले मेरे आने का वादा ले लिया था । उनकी मुहब्बत को कैसे नकारता !सो राष्ट्रपति भवन नहीं जा सका। लेकिन पद्मश्री तो चलकर मेरे घर आ गई, वह मुहब्बतकहाँ से आती ! “
जब मुम्बई के एक जलसे में मेरी अगली मुलाक़ात हुई तो मुझे देखते ही गले से लिपट
गए यह कहते हुए कि अदबी दुनिया में कम से कम राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत होने के लिए हम
दोनों एक साथ याद किए जाएंगे । मैंने कहा: ” प्यारे भाई, आप तो उस मुबारक़ मौक़े पर भी
नदारद रहे । आख़िर क्यों ?
मुमकिन है कि डॉ . बशीर बद्र के लिए ऐसी इन्तहाई तारीफ़ में कुछ ज़ाती झुकाव और
जज़्बाती लगाव काम कर रहा हो लेकिन इसमें तो कोई शक़ है ही नहीं कि आलमी ऐतबार
से दुनिया के किसी भी कोने में मुशायरा आयोजित हो , उसमें हिन्दुस्तान के शायरों में डॉ .
बशीर बद्र को ज़रूर याद किया जाता है ।
आधुनिक नायिका के हावभाव, आचार-व्यवहार और मनोवृत्ति को उसी के अनुरूप
शब्दावली में पेश किया गया है, भले वह ग़ज़ल का प्रचलित मुहावरा न हो । इसे ही
अहतिशाम अख़्तर ने बशीर बद्र का बड़ा कारनामा बताया है औरजिसे उर्दू के मोतबर
आलोचक और शायर शारिब रुदौलवी ने और आगे बढ़ाते हुए कहा है कि ” उन्होंने उर्दू
शायरी में ऐसे डिक्शन को जन्म दिया है जो उनका अपना है । उनके छोटे – छोटे लफ़्ज़ों के
पीछे एक दुनिया आबाद है जिसकी दिलकशी देखने से ताल्लुक़ रखती है । “
डॉ . बशीर बद्र ने उर्दू ग़ज़ल को दूसरी ज़बानों के अल्फ़ाज़ लेकर सँवारने में अपने समय
के तमाम समकालीन शायरों – अदीबों से ज़्यादा महारत हासिल की है । इससे उर्दू ग़ज़ल की लफ़ज़ियात ( शब्दावली) में ख़ासा इज़ाफा हुआ । भले ही बाज़ मुकाम पर उनके इस हुनर ने
ग़ज़ल के हुस्न को नुकसान भी पहुँचाया है लेकिन ऐसा कभी-कभी ही हुआ हैऔर जब ऐसा
हुआ भी तो वह मुहब्बत के किसी न किसी रंग में सराबोर होकर सामने आया और प्यार की
नाजुकी और पाकीज़गी के एहसास के बीच ऐसा खो गया जैसे एक नए प्रयोग की काँकरी
लहरों के कम्पन का हिस्सा बनकर नज़र की चुभन नहीं बनने पाती । बोलचाल में आमतौर
पर प्रचलित अंग्रेज़ी शब्दों को उर्दू ग़ज़ल में लाने का बहुत बड़ा श्रेय डॉ . बशीर बद्र को दिया
जाता है ।अहतिशाम अख़्तर ने उनके बारे में लिखा है कि ” बशीर बद्र का बड़ा कारनामा ये
है कि उन्होंने अंग्रेज़ी के अल्फ़ाज़ को ग़ज़ल की ज़बान में समोने और ग़ज़ल के मिज़ाज से
हमआहंग करने की कोशिश की है । ये बडा मुश्किल काम है । अंग्रेज़ी का लफ़्ज़ ग़ज़ल में
अज़्मो अहतियात और खुशअसलूबी से न इस्तेमाल किया जाए तो ग़ज़ल का शेर हज़ल बन
जाता है । “
उन्होंने अपनी बात को और आगे ले जाते हुए ग़ज़ल के फ़न की खूबसूरती को नए बिम्ब
दिए हैं । उनका कहना है: ” ग़ज़ल चाँदनी की उँगलियों से फूल की पत्तियों पर शबनम की
कहानियाँ लिखने का फ़न है । और ये धूप की आग बनकर पत्थरों पर वक्त की दास्तान
लिखती रहती है । ग़ज़ल में कोई लफ़्ज़ ग़ज़ल का वकार पाए बगैर शामिल नहीं हो सकता।
यानी बिना लुग़त के पन्ने पलटे किसी मिसरे का मानी पकड़ पाने में अहम परेशानी खड़ी
हो जाए । लेकिन वे आगे चलकर कौन – सी ज़बान अपनाएँगे, इसके संकेत इकाई से ही
मिलने लगे थे जो आमद तक आते- आते निखार पा गए । इस सिलसिले में डॉ . बशीर बद्र
का कहा क़ाबिले – गौर है : “किताब से ग़ज़ल की ज़बान नहीं सीखी जा सकती। ग़ज़ल कीज़बान से चुपके – चुपके किताब तकवीयत पाती है । “
ज़बान की यह जादूगरी भी उन्होंने तजर्वे से हासिल की है । जब वे अरबी – फ़ारसी के घर
से निकल कर आए तब उन्हें यह हासिलत हुई कि ग़ज़ल को जन – जन तक पहुँचाने के लिए
उसे अरबी- फ़ारसी के बोझ से अगर बचाया न गया तो ग़ज़ल किताबों में दबकर रह जाएगी ।इकाई उनका पहला संकलन था जिसमें बोझिल शब्दों से लदी- फँदी ग़ज़लों की मात्रा
खासी थी :
क्या करें हौसला नहीं होता किसी भी शेर को लोकप्रिय होने के लिए जिन बातों की ज़रूरत होती है, वे सब इन अशआर में हैं । ज़बान की सहजता, जिन्दगी में रचा- बसा मानी, दिल को छू सकने वाली संवेदना, बन्दिश की चुस्ती, कहन की लयात्मकता – ये कुछ तत्व हैं जो उद्धरणीयता और लोकप्रियता का रसायन माने जाते हैं । बोलचाल की सुगम – सरल भाषा उनके अशआर की लोकप्रियता का सबसे बड़ा आधार है । वे मानते हैं कि ग़ज़ल की भाषा उन्हीं शब्दों से बनती
है जो शब्द हमारी ज़िन्दगी में घुल -मिल जाते हैं ।बशीर बद्र समग्र के सम्पादक बसन्त
प्रताप सिंह ने इस बात को सिद्धान्त की सतह पर रखकर कहा है कि ” श्रेष्ठ साहित्य की
इमारत समाज में अप्रचलित शब्दों की नींव पर खड़ी नहीं की जा सकती। कविता की भाषा
शब्दकोषों या पुस्तकों- पत्रिकाओं में दफ़्न न होकर , करोड़ों लोगों की बोलचाल को संगठित करके और साधारण शब्दों की जीवित और स्पंदनशील रगों को स्पर्श करके ही बन पाती है ।
यही कारण है कि आजकल बोलचाल और साहित्य दोनों में ही संस्कृत , अरबी और फ़ारसी
के क्लिष्ट और बोझिल शब्दों का चलन कम हो रहा है । बशीर बद्र ने ग़ज़ल को पारम्परिक
क्लिष्टता और अपरिचित अरबी – फ़ारसी के बोझ से मुक्त करके जनभाषा में जन – जन तक
पहुँचाने का कार्यकिया है । बशीर बद्र इस ज़बान के जादूगर हैं । “
उनका यह शेर दुनिया के हर कोने में पहुँचा हुआ है । कई बार तो लोगों को यह नहीं मालूम
होता कि यह शेर बशीर बद्र साहब का लिखा हुआ है मगर उसे लोग उद्धत करते पाए जाते
हैं । यही नहीं, उनके सैकड़ों अशआर इसी तरह लोगों की ज़बान पर हैं । कुछ को यहाँ
इसलिए पेश कर रहा हूँ ताकि आप साहिबान को खुद उन्हें पहचानने का सुख मिल सके ।
इनमें तजुर्षों से निकली नसीहत भी है, एक आत्मीय संवाद भी ।
डॉ. बशीर बद्र के ऐसे शब्द – प्रयोग ग़ज़ल को हज़ल तो नहीं बनने देते , ग़ज़ल के पूरे
परिवेश में वे चाहे भारी भले पड़ जाएँ । कहीं- कहीं ये प्रयोग उन्होंने यथार्थ की ज़मीन को
सही- सही पकड़ने के लिए किए हैं ।
अब हम 100+ Best Impressive Motivational Shayari इस शायरी के संग्रह का अंत करते है, हमने इस संग्रह मे sad shayari, motivation shayari, love shayari और attitude shayari पढ़ेंगे । अगर यह Motivational Shayari संग्रह आपको पसाद आया तो जरूर Facebook, Instagram और Whatsapp पर शेयर करे
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