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Motivational Suvichar in Hindi : इस लेख में हम मोटिवेशनल सुविचार हिंदी में देखेंगे। यह हिंदी सुविचार आपको अपने दुःख से उबरने में मदद करेगा और आपको प्रेरित करेगा। इस लेख में हम महान स्वामी विवेकानन्द जी के विचार भी पढ़ सकते हैं |
Hindi Suvichar on Life
महानता कभी ना गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है.
एकाग्रता से ही विजय मिलती है.
सफलता पहले से की गयी तयारी पर निर्भर है, और बिना ऐसी तयारी के असफलता निश्चित है.
उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो.
अगर जिंदगी में कुछ पाना हो तो तरीके बदलो इरादे नहीं.
जब तक जीना, तब तक सीखना अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है.
जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हें सफलता मिलेगी.
व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले सर जाता है.
जिस व्यक्ति के पास कल्पना नहीं है उसके पास पंख नहीं हैं.
बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो. पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हो, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही.
सफलता का कोई रहस्य नहीं है, वह केवल अत्यधिक परिश्रम चाहती है.
कार्य ही सफलता की बुनियाद है.
पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं.
जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत् में सब कुछ कर सकता है. माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें.
जीवन की त्रासदी ये नहीं है कि आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाए त्रासदी तो यह है कि आपके पास पहुंचने को कोई लक्ष्य ही नहीं था.
सत्य और तथ्य में बहुत बड़ा अंतर है तथ्य सत्य को छिपा सकते हैं.
जिसके पास धैर्य है वह जो चाहे वो पा सकता है.
हर चीज का सृजन दो बार होता है, पहली बार दिमाग में दूसरी बार वास्तविकता में.
सफलता एक घटिया शिक्षक है यह लोगों में यह सोच विकसित कर देता है कि वो असफल नहीं हो सकते
ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो.
हार मत मानो हमेशा अगला मौका जरूर आता है.
ऊद्यम ही सफलता की कुजी है.
सच्चा प्रयास कभी निष्फल नहीं होता.
आप आज जो करते हैं उसपर भविष्य निर्भर करता है.
संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम.
एक सफल मनुष्य होने के लिये सुदृढ व्यक्तित्व की आवश्यकता है.
सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है.
पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो
आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है.
अच्छी सोच वाले व्यक्ति को उसका लक्ष्य पाने से दुनियां में कोई नहीं रोक सकता, जबकि बुरी सोच वाले व्यक्ति की कोई मदद नहीं कर सकता.
जिस व्यक्ति में सफलता के लिए आशा और आत्मविश्वास है, वही व्यक्ति उच्च शिखर पर पहुंचते हैं
लगातार प्रयत्न करने वाले लोगों की गोद में सफलता स्वय आकर बैठ जाती है.
मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा
जो अकले चलते हैं, वे शीघ्रता से बढ़ते हैं.
अनन्त काल तक सुख ढूँढ़ते रहो। तुम्हें उसमें सुख्ख के साथ बहुत दुःख तथा अशुभ भी मिलेगा।
उपहास, विरोध और फिर स्वीकृति प्रत्येक कार्य को इन तीन अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है।
जो दूसरों का सहारा ढूँढ़ता है, वह सत्यस्वरूप भगवान् की सेवा नहीं कर सकता।
काम इस प्रकार करते रहो, मानो पूरा कार्य तुममें से प्रत्येक पर निर्भर हैं।
Motivational Suvichar in Hindi On Life
अब हम महान संतों और लेखकों के Motivational Suvichar in Hindi On Life पढ़ेंगे. इससे आपको जीवन जीने की प्रेरणा मिलेगी
व्यक्ति अपने समय ने आने की बात सोचता है, उसके सम्बन्ध में लोगों की गलत धारणा होना निश्चित है।
ग्रन्थालय को कण्ठस्थ करनेवाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं।
शिक्षा के द्वारा उनमें आत्मविश्वास उत्पत्र हुआ और आत्मविश्वास के द्वारा मूल स्वाभाविक ब्रह्मभाव उनमें जागृत हो रहा है
अभावात्मक शिक्षा मृत्यु से भी बुरी है।
आध्यात्मिक जीवन की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठतम-निकटतम उपाय है।
एकमात्र ईश्वर, आत्मा और आध्यात्मिकता ही सत्य हैं- शक्ति-स्वरूप हैं।
ईश्वर की पूजा करना अन्तर्निहित आत्मा की ही उपासला है
जीवन और मृत्यु में, सुख्ख और दुःख में ईश्वर समाल रूप से विद्यमान है। समस्त
ईश्वर मुक्तिस्वरूप है, प्रकृति का नियन्ता है।
श्रेष्ठतम जीवन का पूर्ण प्रकाश है आत्मत्याग, न कि आत्माभिमाना
स्वार्थ ही अनैतिकता और स्वार्थहीनता ही नैतिकता है।
असत्य की अपेक्षा सत्य अजन्त मुला अधिक प्रभावशाली है,
जहाँ यथार्थ धर्म है, वहीं प्रबलतम आत्मबलिदान है।
हमारा सर्वश्रेष्ठ कार्य तभी होगा, हमारा सर्वश्रेष्ठ प्रभाव तभी पड़ेगा, जब हममें ‘अहं-भाव’ लेशमात्र भी न रहेगा।
संकोच है। इसलिए प्रेम ही जीवल का मूलमन्त्र है। प्रेम करनेवाला ही जीता है और स्वार्थी मस्ता रहता है।
संसार को कौल प्रकाश देगा? अतीत का आधार त्याग ही था और भविष्य में
सम्पन्न सैकड़ों बुद्धों की आवश्यकता है।
इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं-निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है.
‘जड’ यदि शक्तिशाली है, तो ‘विवार’ सर्वशक्तिमान है।
अपने आपमें विश्वास रखने का आदर्श ही हमारा सब से पड़ा सहायक
यदि मानवजाति के आज तक के इतिहास में महान् पुरुषों और स्त्रियों के जीवन में सब से बड़ी प्रवर्तक शक्ति कोई है, तो वह आत्माविश्वास ही है।
जीस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है.
असफलता की विन्ता मत करो, वे बिलकुल स्वाभाविक है, वे असफलताएँ जीवन के सौन्दर्य हैं।
संसार की क्रूरता और पापों की बात मत करो। इसी बात पर खेद करो कि तुम अभी भी क्रूरता देखखने को विवश हो।
तुमने बहुत बहादुरी की है शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुंच जाओगे जो अपना उध्दार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का.
लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग में, तुम न्यायपथ से कभी अष्ट न हो.
जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं. इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है-अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है.
Swami Vivekananda Quotes
अब हम स्वामी विवेकानन्द जी के Motivational Suvichar in Hindi पढ़ेंगे.
अपने स्नायु शक्तिशाली बनाओ। हम लोहे की मांसपेशियों और फौलाद के स्नायु वाहते हैं। हम बहुत से चुके अब और अधिक न रोओ, वरन् अपने पैरों पर खड़े होओ और मनुष्य बनो।
अपने आपमें विश्वास रखने का आदर्श ही हमारा सब से पड़ा सहायक है। सभी क्षेत्रों में यदि अपने आप में विश्वास करना हमें सिखाया जाता और उसका अभ्यास कराया जाता, तो मुझे विश्वास है कि हमारी बुराइयों तथा दुःखों का बहुत बड़ा भाम आज तक मिट गया होता।
ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्धि कर सकता है.
सभी जीवंत ईश्वर हैं-इस भाव से सब
तुम अपनी अंतस्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओं. जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते.
टढ़ संकल्प कर लो कि तुम किसी दूसरे को नहीं कोसोने, किसी दूसरे को दोष नहीं दोगे, पर तुम’ मनुष्य’ बन जाओ, खखड़े होओ और अपने आपको दोष दो, स्वयं की ओर ही ध्यान दो, यही जीवन का पहला पाठ है, यह सत्वी चात है।
हमारे स्वभाव में संगठन का सर्वथा अभाव है, पर इसे हमें अपने स्वभाव में लाना है। इसका महान् रहस्य है ईर्ष्या का अभावा अपने भाइयों के मत से सहमत होने को सदैव तैयार रहो और हमेशा समझौता करने का प्रयत्न करो। यही है संगठन का पूरा रहस्या
मैं तुम सब से यहीं चाहता हूँ कि तुम आत्मप्रतिष्ठा, दलबंदी और ईष्या को सदा के लिए छोड़ दो। तुम्हें पृथ्वी-माता की तरह सहनशील होना चाहिए
शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिष्क में कैंस दिया गया है और जो आत्मसात हुए बिना वहाँ आजन्म पड़ा रहकर गड़बड़ मचाया करता है। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है, जो जीवन-निर्माण, ‘मनुष्य’ निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि आप केवल पाँच ही परखे हुए विचार आत्मसात् कर उनके अनुसार अपने जीवन और तस्त्रि का निर्माण कर लेते हैं, तो आप पूरे ग्रन्थालय को कण्ठस्थ करनेवाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं।
पूर्वजों तथा दूसरे देशों ने जीवन के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर क्या सोचा है। विशेषकर वे देखें कि दूसरे लोग अब क्या कर रहे हैं, और फिर वे निर्णय करो हमारा काम रासायनिक हव्यों को एक साथ रखना है, स्वे बनाने का कार्य प्रकृति अपने नियमों के अनुसार करेगी ही। भविष्य में क्या होनेवाला है यह मैं नहीं देखता, और न मुझे देखने की परवाह ही है। पर जिस प्रकार अपने सामने मैं जीवन प्रत्यक्ष रूप से देख रहा हूँ, उस प्रकार अपने मनश्चक्षु के सम्मुख मुझे एक दृश्य स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है और वह है मेरी यह प्राचीन मातृभूमि फिर से जम गयी है, वह सिंहासन पर बैठी है,
समस्त संसार हमारी मातृभमि का महान् ऋणी है। किसी भी देश को ले लीजिए, इस जगत् में एक भी जाति ऐसी नहीं है, जिसका संसार उतजा ऋणी हो, जितना कि वह यहाँ के धैर्यशील और विना हिन्दुओं का है।
ग्रन्थों के अध्ययन से कभी कभी हम श्रम में पड़ जाते हैं कि उनसे हमें आध्यात्मिक सहायता मिलती है; पर यदि हम अपने ऊपर उन ग्रन्थों के अध्ययन से पड़नेवाले प्रभाव का विश्लेषण करें, तो ज्ञात होगा कि अधिक से अधिक हमारी बुद्धि पर ही उसका प्रभाव पड़ा है, न कि हमारे अन्तसत्मा परा आध्यात्मिक विकास के लिए प्रेस्क-शक्ति के रूप में ग्रन्थों का अध्ययन अपर्याप्त है, क्योंकि यद्यपि हममें से प्रायः सभी आध्यात्मिक विषयों पर अत्यन्त आश्चर्यजनक भाषण दे सकते हैं, पर जब प्रत्यक्ष कार्य तथा वास्तविक आध्यात्मिक जीवन बिताने की बात आती है, तब अपने को बुरी तरह अयोग्य पाते हैं। आध्यात्मिक जागृति के लिए ब्रह्मलिष्ठ गुरु से प्रेस्क-शक्ति प्राप्त होनी चाहिए।
अपनी अज्ञानता की स्थिति में तुमने जितनी प्रार्थना की और उसका तुम्हें जो उत्तर मिला, तुम समझते रहे कि वह उत्तर किसी अन्य व्यक्ति ने दिया है, पर वास्तव में तुम्ही ने अनजाने उन प्रार्थनाओं का उत्तर दिया है।
तुम्हारी सहायता कौल करेगा? तुम स्वयं ही विश्व के सहायता-स्वरूप हो। इस विश्व की कौनसी वस्तु तुम्हारी सहायता कर सकती है। तुम्हारी सहायता करनेवाला मनुष्य, ईश्वर या प्रेतात्मा कहीं है? तुम्हें कौन पराजित कर सकता है? तुम स्वयं ही विश्वसष्टा भगवान् हो, तुम किससे सहायता लोगे? सहायता
वह तुम्हारे लिए खुल जाएगा।”ये शब्द पूर्ण रूप से सत्य हैं, न आलकारिक हैं, ज काल्पनिका
बालप्रकृति पर विजय प्राप्त करना बहुत अच्छा और बहुत बड़ी बात है, पर अन्तः प्रकृति को जीत लेना इससे भी बड़ी बात है……। अपने भीतर के’ मनुष्य’ को वश में कर लो, मानव-मन के सूक्ष्म कार्यों के रहस्य को समा लो और उसके आधर्यजनक गुप्त भेद को अच्छी तरह जान लो ये बातें धर्म के साथ अच्छेा भाव से सम्बद्ध हैं।
धर्म मतवाद या बैद्धिक तर्क में नहीं है, वरन् आत्मा की ब्रह्मस्वरूपता को जान लेना, तद्रूप हो जाना उसका साक्षात्कार, यही धर्म है। ईसा के इन शब्दों को स्मरण स्खो- “माँगो, वह तुम्हें मिलेगा;
प्रत्येक जीव ही अव्यक्त ब्रह्म है। बाम एवं अन्तः प्रकृति, दोनों का नियमज कर, इस अन्तर्निहित ब्रह्म-स्वरूप को अभिव्यक्त करना ही जीवन का ध्येय हैं। कर्म, भक्ति, योग या ज्ञान के द्वारा, इनमें से किसी एक के द्वारा, या एक से अधिक के द्वारा, या सब के सम्मिलन के द्वारा, यह ध्येय प्राप्त कर लो और मुक्त हो जाओ। यही धर्म का सर्वस्व है। मतमतान्तर, विधि या अनुष्ठान, ग्रन्थ, मन्दिर-ये सब मौण हैं।
स्मरण रखो, पूरा जीवन देने के लिए ही है। प्रकृति देने के लिए विवश करेगी; इसीलिए अपनी खुशी से ही दो….. तुम संग्रह करने के लिये ही जीवन धारण करते हो। मुट्ठी-बँधे हाथ से तुम बटोरना चाहते हो, पर प्रकृति तुम्हारी गर्दन दबाती है और तुम्हारे हाथ खुल जाते हैं। तुम्हारी इच्छा हो या न हो, तुम्हें देना ही पड़ता है। जैसे ही तुम कहते हो, ‘मैं नहीं दूँगा’, एक घूँसा पडता है और तुम्हें चोट लगती है। ऐसा कोई भी नहीं है, जिसे अन्त में सब कुछ त्यागना न पड़ो
पहले रोटी और फिर धर्मी सब बेवारे दरिद्री भूखों मर रहे हैं, तब हम उनमें व्यर्थ ही धर्म को ढूँसते हैं। किसी भी मतवाद से भूख की ज्याला शान्त नहीं हो सकती….।
ईश्वर मुक्तिस्वरूप है, प्रकृति का नियन्ता है। तुम उसे मानले से इन्कार नहीं कर सकते। नहीं, क्योंकि तुम स्वतन्त्रता के भाव के बिना न कोई कार्य कर सकते हो, ज जी सकते हो। कोई भी जीवत्र असफल नहीं हो सकता; संसार में असफल कही जानेवाली कोई वस्तु है ही नहीं। सैकड़ों बार मनुष्य को वोट पहुँच सकती है, हजारों बार वह पछाड़ खा सकता है, पर अन्त में वह यही अनुभव करेगा कि वह स्वयं ही ईश्वर ही
ये महामानव असामान्य नहीं थे; वे तुम्हारे और हमारे समाज ही मनुष्य थे। पर वे महान् योगी थे। उन्होंने यही ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर ली थी; हम और तुम भी इसे प्राप्त कर सकते हैं। वे कोई निशेष व्यक्ति नहीं थे। एक मनुष्य का उस स्थिति में पहुँचना ही इस बात का प्रमाण है कि उसकी प्राप्ति प्रत्येक मनुष्य के लिए सम्भव है। सम्भव ही नहीं, बल्कि प्रत्येक मनुष्य अन्त में उस स्थिति को प्राप्त करेगा ही, और यही है धर्मी
एक विचार ले लो उसी एक विचार के अनुसार अपने जीवन को बलाओ; उसी को सोचो, उसी का स्वप्न देखो और उसी पर अवलम्बित रहो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, स्नायुओं और शरीर के प्रत्येक भाग को उसी विवार से ओतप्रोत होजे दो और दूसरे सब विचारों को अपले से दूर रखो। यही सफलता का रास्ता है और यही वह मार्ग है, जिसने महान् धार्मिक पुरुषों का निर्माण किया है।
अभ्यास अत्यावश्यक है। तुम प्रतिदिन घण्टों बैठकर मेरा उपदेश सुजते, रहो, पर यदि तुम उसका अभ्यास नहीं करते, तो एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकते। यह सब तो अभ्यास पर ही निर्भर है। जब तक हम इन बातों का अनुभव नहीं करते, तब तक इन्हें नहीं समझ सकते। हमें इन्हें देखना और अनुभव कस्ना पड़ेगा। सिद्धान्तों और उनकी व्याख्याओं को केवल सुनने से कुछ न होगा।
मैं जानता हूँ कि वह जाति जिसने सीता को जन्म दिया यह चाहे उनका स्वप्न ही क्यों न हो स्त्रियों के लिए वह सम्मान रखती है, जो पृथ्वीतल पर अतुलनीय है। जब प्रत्येक बात में सफलता निश्चित रहती है, तब मूर्ख भी अपनी प्रशंसा पाने के लिए उठ खड़ा हो जाता है और कायर भी वीर की सी वृत्ति धारण कर लेते हैं, पर सच्चा वीर बिना एक शब्द मुँह से बोले कार्य करता जाता है। एक बुद्ध का आविर्भाव होने से पहले न जाने कितने बुद्ध हो चुके हैं।
पश्चिमी राष्ट्रों ने राष्ट्रीय जीवन का जो आश्चर्यजनक ढाँचा तैयार किया है, उसे चरित्र के हठ स्तम्भों का ही आधार है, और हम जब तक ऐसे स्तम्भों का निर्माण नहीं कर लेते, तब तक हमारा किसी भी शक्ति के विरुद्ध आवाज उठाना व्यर्थ है।
असफलता की विन्ता मत करो, वे बिलकुल स्वाभाविक है, वे असफलताएँ जीवन के सौन्दर्य हैं। उनके बिना जीवन क्या होता? जीवन में यदि संघर्ष न रहे, तो जीवित रहना ही व्यर्थ है इसी संघर्ष में है जीवन का काव्या संघर्ष और त्रुटियों की परवाह मत करो।
मैं जानता हूँ कि काँटा कहाँ चुभता है। मुझे इसका कुछ अनुभव है। तुम्हारे स्नायु और मांसेपशियों अधिक मजबूत होने पर तुम गीता अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे। तुम, अपने शरीर में शक्तिशाली रक्त प्रवाहित होने पर, श्रीकृष्ण के तेजस्वी गुणों और उनकी अपार शक्ति को अधिक समझ सकोनो जब तुम्हारा शरीर मजबूती से तुम्हारे पैरों पर खडा रहेमा और तुम अपन को ‘मनय’ अनभव करोग, तब तम उपिनषद औऱ आमा क महानता को अिधक अछा समझ सकोग। ‘मनुष्य’ केवल ‘मनुष्य’ ही हमें चाहिए, फिर हरएक वस्तु हमें प्राप्त हो जाएगी।
तुम क्या जानों कि ऊपर दिखाई देनेवाले पतन की ओट में शक्ति की कितनी सम्भावनाएँ है? जो शक्ति तुममें है, उसके बहुत ही कम भाग को तुम जानते हो। तुम्हारे पीछे अनन्त शक्ति और शान्ति का सागर है।
‘जड’ यदि शक्तिशाली है, तो ‘विवार’ सर्वशक्तिमान है। इस विवार को अपने जीवन में उतारो और अपने आपको सर्वशक्तिमान, महिमान्वित और मौस्वसम्पन्न अनुभव करो। ईश्वर करे, तुम्हारे मस्तिष्क में किसी कुसंस्कार को स्थान न मिले। ईश्वर करे, हम जन्म से ही कुसंस्कार डालनेवाले वातावरण में न रहें और कमजोर तथा बुराई के वितारों से बचें। तुम अपने जीवाणुकोष (Amoeba) की अवस्था से लेकर इस मनुष्य-शरीर
विश्व की समस्त शक्तियाँ हमारी हैं। हमने अपने हाथ अपनी आँखों पर रख लिये हैं और चिल्लाते हैं कि सब ओर अँधेरा है। जान लो कि हमारे चारों ओर अँधेरा नहीं है, अपने हाथ अलग करो, तुम्हें प्रकाश दिखाई देने लगेगा, जो पहले भी था। अँधेरा कभी नहीं था, कमजोरी कभी नहीं थी। हम सब मूर्ख हैं जो चिल्लाते हैं कि हम कमजोर हैं, अपवित्र हैं।
आज संसार के सब धर्म प्राणहीन एवं परिहास की वस्तु हो गये हैं। आज जमत्
का सच्चा अभाव है चरित्रा संसार को उनकी आवश्यकता है जिनका जीवन उत्कट प्रेम तथा निःस्वार्थपरता से पूर्ण है। वह प्रेम प्रत्येक शब्द को वज्रवत् शक्ति प्रदान करेगा।
संसार को बस कुछ सौ साहसी स्त्री-पुरुषों की आवश्यकता है। उस साहस का अभ्यास करो, जिसमें सवाई जानने की हिम्मत है, जिसमें जीवन के सत्य को बतलाने की हिम्मत है, जो मृत्यु से नहीं काँपता, मृत्यु का स्वागत करता है, और मनुष्य को बतलाता है कि वह अमर आत्मा है, समस्त विश्व में कोई उसका हनन नहीं कर सकता। तब तुम स्वतन्त्र हो जाओगे। कर्म करना बहुत अच्छा है, पर वह विचारों से आता है…., इसलिए अपने मस्तिष्क को उत्च विचारों और उत्चतम आदर्शों से भर लो, उन्हें रात-दिन अपने सामने रखो, उन्हीं में से महान् कार्यों का जन्म होमा।
तब तक है मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को कृतस्ल समझता हूँ, जो उनके बल पर शिक्षित बना, पर आज उनकी ओर ध्यान तक लहीं देता। मैं उब मजष्यों को हतभाग्य कहता हूँ, जो अपने ऐश्वर्य का वृथा गर्व करते हैं और जिन्होंने गरीबों को, पददलितों को पीसकर थत्र एकत्र किया है पर जो बीस करोड़ व्यक्तियों के लिए कुछ भी नहीं करते, जो भूस्खे जंगली मनुष्यों की तरह जीवन बिता रहे हैं। भाइयो, हम गरीय हैं, जगण्य हैं, पर ऐसे ही व्यक्ति सदैव परमात्मा के साधन-स्वरूप रहे हैं। मुझे मुक्ति या भक्ति की परवाह नहीं है, मैं सैकडो हजारों लस्क में ही क्यों ज जाऊँ, वसन्त की तरह मौन दूसरों की सेवा करना ही मेरा धर्म है।
तुम प्रभु की सन्तान, अमर आनन्द के हिस्सेदार, पवित्र और पूर्ण हो। ऐ पृथ्वीनिवासी ईश्वरस्वरूप भाइयो ! तुम भला पापी? मनुष्य को पापी कहना ही पाप है; यह कथन मानवस्वरूप पर एक लांछन है। ऐ सिहों, आओ और अपने तई भेड़-बकरी होने का का भ्रम दूर कर दो।
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