200+ Best Hindi Suvichar on life

Hindi Suvichar

Hindi Suvichar : इस आलेख में हम 200+ हिंदी सुविचार संग्रह देखेंगे। यह हिंदी सुविचार संग्रह आपको प्रेरणा देंगे और आपकी दुखभरी जीवन से उभरने में मदत करेगें। इस आलेख में स्वामी विवेकानंद जी के विचार भी हमने सांझा किए है

Hindi Suvichar on life

Best Motivational Suvichar In Hindi

खुश रहो लेकिन कभी संतुष्ट मत रहो.

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सच्चा प्रयास कभी निष्फल नहीं होता.

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काम इस प्रकार करते रहो, मानो पूरा कार्य तुममें से प्रत्येक पर निर्भर हैं

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अभावात्मक शिक्षा मृत्यु से भी बुरी है

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शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है.

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सफलता बहुत अच्छी होती है

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लक्ष्य के बारे में सबसे जरूरी चीज है कि वह होना चाहिए.

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हम जो है, उसके ज़िम्मेदार हम खुद हैं.

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पवित्रता, दृढता तथा उ‌द्यम ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ.

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जो दूसरों का सहारा ढूँढ़ता है, वह सत्यस्वरूप भगवान् की सेवा नहीं कर सकता

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जीवन और मृत्यु में, सुख्ख और दुःख में ईश्वर समाल रूप से विद्यमान है

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एक विचार ले लो उसी एक विचार के अनुसार अपने जीवन को बलाओ

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आध्यात्मिक जीवन की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठतम निकटतम उपाय है।

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उपहास, विरोध और स्वीकृति जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है

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शक्ति और विशवास के साथ लगे रहो सत्यनिष्ठाः पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लड़ो. हमारी जाति का रोग ईष्या ही है

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अनन्त काल तक सुख ढूँढ़ते रहो। तुम्हें उसमें सुख्ख के साथ बहुत दुःख तथा अशुभ भी मिलेगा

मनुष्य को, वह जितना नीचे जाता है जाने दो, एक समय ऐसा अवश्य आएमा, जब वह ऊपर उठने का सहारा पाएगा और अपने आप में विश्वास करना सीखेगा। 

Motivational Suvichar Hindi

नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अन्तः करण पूर्णतया शुध्द रहना चाहिए. नीतिपरायण तथा साहसी बनो पूर्ण प्रणों के

अच्छाई की शक्तियों पर दृढ़ विश्वास,
ईर्ष्या और सन्देह का अभाव,

श्रेयांसि बहु विघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं.

महाशक्ति का तुममै संचार होगा भयभीत मत होना. पवित्र होओ, होओ, और आज्ञापालक होओ.

गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ. सबके साथ मेल से रहो.

मेरी इढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है तुमसे वह शक्ति वि‌द्यमान है.

ध्यान ही महत्वपूर्ण बात है। ध्याल लगाओ। ध्याज सब से बड़ी बात है।

चार आत्मसात् कर उनके अनुसार अपने जीवन और तस्त्रि का निर्माण कर लेते हैं,

संसार में अनेक धर्म हैं, यद्यपि उनकी उपासना के नियम भित्र हैं, तथापि वे वास्तव में एक ही हैं।

मैं मृत्युपर्यन्त अनवरत कार्य करता रहूँगा और मृत्यु के पश्चात भी मैं दुनिया की भलाई के लिए कार्य करूँगा।

अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, स्नायुओं और शरीर के प्रत्येक भाग को उसी विवार से ओतप्रोत होजे दो और दूसरे सब विचारों को अपले से दूर रखो।

Swami Vivekananda Quotes

अब हम इस आलेख में महान स्वामी विवेकानन्द जी के महान विचार देखेंगे । इस Hindi Suvichar आलेख में हमने स्वामी विवेकानन्द जी के विचार का संग्रह आपको सांझा किया है ।

हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुजाना होला है उपहास, विरोध और स्वीकृति जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है. लोग उसे निश्चय ही गलत समझते है. इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं, परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और अगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, लब ये सब लुप्त हो जायेंगे

जब तक सभ्यता नाम से पहचानी जानेवाली बीमारी अस्तित्व में है, तब तक दरिद्रता अवश्य रहेगी और इसलिए उसके दूर करने की आवश्यकता भी बनी रहेगी।

भारत को छोड़ने के पहले मैंने उससे प्यार किया, और अब तो उसकी धुलि भी मेरे लिए पवित्र हो गयी है, उसकी हवा भी मेरे लिए पावन हो गयी है। वह अब एक पवित्र भूमि है, यात्रा का स्थान है, पवित्र तीर्थक्षेत्र है।

मेरी बात पर विश्वास कीजिए। दूसरे देशों में धर्म की केवल चर्चा ही होती है, पर ऐसे धार्मिक पुरुष, जिन्होंने धर्म को अपने जीवन में परिणत किया है, जो स्वयं साधक है, केवल भारत में ही हो

तुम्हें इस समय जो शिक्षा मिल रही हैं, उसमें कुछ अराछाड्‌यों अवश्य हैं, पर उसमें एक भयंकर दोष हैं जिससे ये सब अच्छी बातें दब गयी हैं। सब से पहली बात यह है कि उसमें मनुष्य बनाने की शक्ति नहीं है, वह शिक्षा नितान्त अभावात्मक है। अभावात्मक शिक्षा मृत्यु से भी बुरी है।

अपने लिए कुछ मत चाहो, दूसरों के लिए ही सब कुछ करो-यही है ईश्वर में तुम्हारे जीवन की स्थिति, मति तथा प्राप्ति।

मैं मृत्युपर्यन्त अनवरत कार्य करता रहूँगा और मृत्यु के पश्चात भी मैं दुनिया की भलाई के लिए कार्य करूँगा। असत्य की अपेक्षा सत्य अजन्त मुला अधिक प्रभावशाली है, 

पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो. एक बात और है.. आगे बढो तुमने बहुत अच्छा काम किया है हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते.

यदि ईश्वर है, तो हमें उसे देखना चाहिए; अन्यथा उन पर विश्वास न करना ही अच्छा है। ढोंगी बनले की अपेक्षा स्पष्ट रूप से नास्तिक बनना अच्छा है।

आओ, मनुष्य बनो। अपनी संकीर्णता से बाहर आओ और अपजा दृष्टिकोण व्यापक बनाओ। देखो, दूसरे देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। क्या तुम मनुष्य से प्रेस करते हो

भौतिक शक्ति का प्रत्यक्ष केन्द्र यूरोप, यदि आज अपनी स्थिति में परिवर्तल कस्ले में सतर्क नहीं होता, यदि वह अपना आदर्श नहीं बदलता

मैं एक ऐसे नये मानव-समाज का संगठन करना चाहता हूँ जो ईश्वर पर हृदय से विश्वास रखता है और जो संसार की कोई परवाह नहीं करता।

बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरु में अक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता.

बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरु तथा ईश्वर में विश्वास- ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता.

क्या तुम्हें खेद होता है? क्या तुम्हें इस बात पर कभी खेद होता है कि देवताओं और ऋषियों के लाखों वंशज आज पशुवत् हो गये हैं? क्या तुम्हें इस बात पर दुःख होता है कि लाखों मनुष्य आज भूख की ज्याला से तड़प रहे हैं और सदियों से तड़पते रहे हैं?

जीवन और मृत्यु में, सुख्ख और दुःख में ईश्वर समाल रूप से विद्यमान है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने क्षेत्र खोलो और उसे देखो। ईश्वर की पूजा करना अन्तर्निहित आत्मा की ही उपासला है।यदि हाँ, तो तुम उसे अवश्य प्राप्त कर सकते हो, और तभी तुम यथार्थ धार्मिक होंगेो जब तक तुम इसका प्रत्यक्ष अनुभव नहीं कर लेते, तुममें और नास्तिकों में कोई अन्तर नहीं। नास्तिक ईमानदार हैं, पर वह मनुष्य जो कहता है कि वह धर्म में विश्वास रखता है, पर कभी उसे प्रत्यक्ष करने का प्रयत्न नहीं करता, ईमानदार नहीं है।

ध्यान ही महत्वपूर्ण बात है। ध्याल लगाओ। ध्याज सब से बड़ी बात है। आध्यात्मिक जीवन की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठतम-निकटतम उपाय है। हमारे दैनिक जीवन में यही एक क्षण है, जब हम सांसारिकता से पृथक् रह पाते हैं; इसी क्षण में आत्मा अपने आप में ही लीन रहती है, अन्य सब विचारों से मुक्त रहती है-यही है

एक विचार ले लो उसी एक विचार के अनुसार अपने जीवन को बलाओ; अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, स्नायुओं और शरीर के प्रत्येक भाग को उसी विवार से ओतप्रोत होजे दो और दूसरे सब विचारों को अपले से दूर रखो।

मैं पुत्रः पुत्रः जन्म धारण करूँ और हजारों मुसीबतें सहता रहूँ, जिससे मैं उस परमात्मा को पज सकें, जो सदा ही वर्तमान है, जिस अकेले में मैं सर्वदा विश्वास रखता हूँ, जो समस्त जीवों का समष्टिस्वरूप है और जो दुष्टों के रूप में, पीड़ितों के रूप में तथा सब जातियों, सब वर्गों के गरीबों में प्रकट हुआ है। वही मेरा विशेष आराध्य है।

जो अपने आपको ईश्वर को समर्पित कर देते हैं, वे तथाकथित कर्मियों की अपेक्षा संसार का अधिक हित करते हैं। जिस व्यक्ति ने अपने को पूर्णतः शुद्ध कर लिया है, वह उपदेशकों के समूह की अपेक्षा अधिक सफलतापूर्वक कार्य करता है। वितशुद्धि और मौज से ही शब्द में अति आती है।

क्या तुम इसमें विश्वास करते हो? हाँ, मैं जैसे-जैसे बड़ा होता जाता हूँ वैसे ही वैसे मुझे सब कुछ ‘मनुष्यत्व’ में ही निहित मालूम पड़ता है। यह मेरी नयी शिक्षा है।

भोजन, भोजन’ चिल्लाने और उसे खाने तथा ‘पानी, पानी’ कहने और उसे पीने में बहुत अन्तर है। इसी प्रकार केवल ‘ईश्वर, ईश्वर’ स्टने से हम उसका अनुभव करने की आज्ञा नहीं कर सकता हमें उसके लिए प्रयत्न करना चाहिए, साधना करनी चाहिए।

बसन्त की तरह लोग का हित करते हुए यहि मेरा धर्म है. ‘मुझे मुक्ति और भक्त्ति की चाह नहीं. जाखाँ नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं परन्त यही मेरा धर्म है.

मुझे मत त्यामा’ हीरों की खाल को छोड़कर काँच की मणियों के पीछे मत दौड़ो। यह जीवन एक अमूल्य सुयोग है। क्या तुम सांसरिक सुख्खों की खोज करते हो?- प्रभु ही समस्त सुख के स्रोत हैं। उसी उच्चतम को खोजो, उसी को अपना लक्ष्य बलाओ और तुम अवश्य उसे प्राप्त करोगे।

 मेरी इढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है तुमसे वह शक्ति वि‌द्यमान है. नो संसार को हिला सकती है, धीरे धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे. ‘साहसी शब्द और उससे अधिक ‘साहसी कमी की

बुराई भी करो, तो ‘मनुष्य’ की तरहा यदि आवश्यक ही हो, तो निर्दयी भी बनो, पर उच्च स्तर परा  प्रेम और निःस्वार्थता
निःस्वार्थता अधिक लाभदायक है, किन्तु लोगों में उसका अभ्यास करने का धैर्य नहीं है।
उच्च स्थान पर खड़े होकर और हाथ में कुछ पैसे लेकर यह न कहो-“ऐ भिखारी, आओ यह लो।” परन्तु इस बात के लिए उपकार मानो कि तुम्हारे सामने वह गरीब है, जिसे दान देकर तुम अपने आप की सहायता कर सकते हो। पानेवाले का सौभाग्य नहीं, पर वास्तव में देनेवाले का सौभाग्य है। उसका आभार मानो कि उसने तुम्हें संसार में अपनी उदारता और दया प्रकट करने का अवसर दिया और इस प्रकार तुम शुद्ध और पूर्ण बन

दूसरों की भलाई करने का अनवरत प्रयत्न करते हुए हम अपने आपको भूल जाने का प्रयत्न करते हैं। यह अपने आपको भूल जाना एक ऐसा बड़ा सबक है, जिसे हमें अपने जीवन में सीखना है। मनुष्य मूर्खता से यह सोचने लगता है कि वह अपने को सुखी बना सकता है, पर वर्षों के संघर्ष के पश्चात् अन्त में वह कहीं समझ पाता है कि सच्चा सुख स्वार्थ के नाश में है और उसे अपने आपके अतिरिक्त अन्य कोई सुख्खी नहीं बना सकता।

मैं अभी तक के सभी धर्मों को स्वीकार करता हूँ और उन सब की पूजा करता हूँ, मैं उनमें से प्रत्येक के साथ ईन्चर की उपासना करता हूँ: वे स्वयं चाहे किसी भी रूप में उपासना करते हो। मैं मुसलमानों की मसजिद में जाऊँगा, मै ईसाइयों के मिरजा में क्रास के सामने घुटने टेककर प्रार्थना करूँगा, मैं बौद्ध- मन्दिरों में जाकर बुद्ध और उनकी शिक्षा की शरण लूँगा। जंगल में जाकर हिन्दुओं के साथ ध्यान करूंगा, जो हृदयस्थ ज्योतिस्वरुप परमात्मा को प्रत्यक्ष करने में लगे हुए हैं।

हमारे यमण्डी रईस पूर्वज हमारे देश की सर्वसाधारण जनता को अपने पैसे से तब तक कुचलते रहे, जब तक कि वे निस्सहाय नहीं हो गये जब तक कि वे बेचारे मरीच प्रायः वह तक भूल नहीं गये कि वे मनुष्य हैं। वे शताब्दियों तक केवल लकडी काटने और पानी भरने को इस तरह विवश किये गये कि उनका विश्वास हो गया कि वे गुलाम के रूप में ही जन्मे हुए हैं, लकडी काटने और पानी भरने के लिए ही पैदा हुए हैं।

यह धर्म उसके द्वारा प्राप्त किया जाता है, जिसे हम भारत में ‘योग’ या ‘एकत्व’ कहते हैं। यह योग कर्मयोगी के लिए मनुष्य और मनुष्य जाति के एकत्व के रूप में, राजयोगी के लिए जीव तथा ब्रह्म के एकत्व के रूप में, भक्त के लिए प्रेमस्वरूप भगवान् तथा उसके स्वयं के एकत्व के रूप में और ज्ञालयोगी के लिए बहुत्व में एकत्व के रूप प्रकट होता है। यही है योग का अर्थी
हाँ, वह मनुष्य को अमर बना देता है, उसने मनुष्य के निकट उसके यथार्थ स्वरूप को प्रकाशित किया है और वह मनुष्य को ईश्वर बनाएगा। यह है धर्म की उपयोगिता।

हम भारतेतर देशों के बिना कुछ नहीं कर सकते, यह हमारी मुर्खता थी कि हमने सोचा, हम कर सकेंगे, और परिणाम यह हुआ कि हमें लगभग एक हजार वर्ष की दासता दण्ड के रूप में स्वीकार करनी पड़ी। हमले बाहर जाकर दूसरे देशों से अपने देश की बातों की तुलना नहीं की और जो सब कार्य हो रहे रहे हैं, उन पर ध्यान नहीं दिया यही भारत के पतन का एक प्रधान कारण है। हम इसका दण्ड पा चुके, अब हम यही और आगे न करें।

आवश्यकता है उठी उठो संसार दुःख से जल रहा है. क्या तुम सो सकते हो? हम बार बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठे, जब तक अन्तर्यामी देव उत्स पुकार का उत्तर न दें. जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या है?

निःस्वार्थ प्रेम, निःस्वार्थ कार्य आदि का यही रहस्य है। भी वही रहेगा। पृथ्वी के वीस्तम और महानतम पुरुषों को दूसरों की सब की भलाई के लिए अपनी बलि देनी पड़ेगी। अजन्त प्रेम और अपार दयालुता

मुझे मत त्यामा’ हीरों की खाल को छोड़कर काँच की मणियों के पीछे मत दौड़ो। यह जीवन एक अमूल्य सुयोग है। क्या तुम सांसरिक सुख्खों की खोज करते हो?- प्रभु ही समस्त सुख के स्रोत हैं। उसी उच्चतम को खोजो, उसी को अपना लक्ष्य बलाओ और तुम अवश्य उसे प्राप्त करोगे।

सारा पश्चिम एक ज्वालामुखी के मुख पर बैठा है, जो कल ही फूट सकता है और टूक-टूक हो जा सकता है।
एशिया ने सभ्यता की नींव डाली, यूरोप ने पुरुष का विकास किया और अमेरिका स्त्रियों तथा सर्वसाधारण जनता का विकास कर रहा है। प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक राष्ट्र को महान् होने के लिए निम्नलिखित तीन बातों
की आवश्यकता है

अब हम इस Hindi Suvichar आलेख के आखिर में आए है, इस आलेख में हमने Motivational Hindi Suvichar, Hindi Suvichar on life, Hindi Suvichar by Swami Vivekanand Ji देखे । उम्मीद है की आपको हमारे सांझा किए हुए Hindi Suvichar संग्रह पसंद आए होंगे ।

स्वामी विवेकानन्द जी के विचार से हर कोई प्रभावित होते है । उन्होंने हमारे भारतीय कला, विचार और संस्कृती को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाया एवम शोभा बढ़ाई । येसे महान स्वामी विवेकानन्द जी के विचार हमने इस Hindi Suvichar आलेख द्वारा पड़े । उम्मीद है आपको यह Hindi Suvichar आलेख पसंद आया होगा, Hindi Suvichar आलेख पसंद आए होंगे तो यह Hindi Suvichar आलेख अपने व्हाट्सएप फेसबुक और इंस्टाग्राम में शेयर कीजिए । यह Hindi Suvichar आलेख को आपकी फैमिली और फ्रेंड्स में शेयर कीजिए

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