100+ Best 2 Line Love Shayari Urdu

100+ Best 2 Line Love Shayari Urdu

अगर आपका दिल भी है बेचैन, घबराया क्या प्यार में टूटा हुआ तो आपके लिए 100+ Best 2 line love shayari urdu शायरी संग्रह सुनना चाहिए जो मशहूर शायर राहत इंदौरी साहब द्वारा बताया गया है इस 2 line love shayari urdu शायरी में आप प्रेरणा भी लेंगे और अपने दिल के जख्म को राहत भी देंगे । इस 2 line love shayari urdu, rahat indori shayari in hindi, rahat indori love shayari शायरी संग्रह में हम 100 से अधिक हिंदी शायरी पढ़ेंगे, तो चलिए इस शायरी कलेक्शन को शुरू करे ।

2 line love shayari urdu

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यार कह दे के जिन्दगी क्या है ,
इक अजब सी ये बंदगी क्या है ।

love shayari urdu

मन्दिर मस्जिद पानी की दीवारें हैं
पानी की दीवार पे किसने नाम लिखा

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तमाम ज़िन्दगी अपनी ग़ज़ल के नाम लिखे
हर एक फैसला हमने ख़ुदा पे छोड़ दिया ।

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उदास चाँद सितारों को हमने छोड़ दिया
हवा के साथ चले और हवा को मोड़ दिया

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चाँदनी रात है घर धूप का घर लगता है
दिल मेरा आग में उड़ता हुआ पर लगता है

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छइयाँ छइयाँ चुल्लू चुल्लू पानी पी
दिल का दरिया पार करेगा, चल झूठे

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मैं जमीं ता आसमाँ वो कैद आतिशदान में
धूप रिश्ता बन गयी सूरज में और इन्सान में

rahat indori shayari in hindi

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इन नई नस्लों ने सूरज आज तक देखा नहीं
रात हिन्दुस्तान में है रात पाकिस्तान में

ताज्जुब हुआ जब मैंने पाया कि उनके दिल में उनके घर में आग लगाने वालों पर
कोई आक्रोश नहीं था । अल्फ़ाज़ में एक दरवेशी समाँ तारी था :

दिन का सफ़र करके रोज शाम के बाद
पहाड़ियों से घिरी क़ब्र में उतरता हूँ

वो जानता है अकेला कहाँ मैं जाऊँगा
इसीलिये तो मेरा हाथ उसने छोड़ दिया

उसने छु कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए

हम बिस्तरी में धूप सा खरगोश महे- ख़्वाब
खाली नहीं लिहाफ़ में सोई हुई ग़ज़ल

पलकों के सायबां तले झिलमिल सी चाँदनी
मीरा के आँसुओं में भिगोई हुई ग़ज़ल

जागी हुई ग़जल कभी सोई हुई ग़ज़ल
हरदम तेरे ख्याल में खोई हुई ग़ज़ल

मीर , कबीर , नज़ीर, बशीर के जलवे हैं
ग़ालिब क्या दरबार करेगा, चल झूटे

दारू से इनकार करेगा, चल झूटे
तू बच्चों से प्यार करेगा , चल झूटे

किसके अंदर क्या छुपा है कुछ पता चलता नहीं
तेल की दौलत मिली मैदान रेगिस्तान में

ऐसा लगता है कि उसने मुझे ग़ालिब समझा
न उठाता है मुझे और न बिठाता है मुझे

हिन्दुस्तान का मज़हब दिल का मज़हब है
प्यार को पूजा चाहत को इस्लाम लिखा

उस दिन पहला फूल खिला जब पतझड ने
पत्ती पत्ती तोड़ के तेरा नाम लिखा

नाम उसी का नाम सवेरे शाम लिखा
शेर लिखा या ख़त उसको गुमनाम लिखा

मुझे खुदा ने ग़ज़ल का दयार बख़्शा है
यह सल्तनत मैं मुहब्बत के नाम करता हूँ

मुझे खुदा ने ग़ज़ल का दयार बख़्शा है
यह सल्तनत मैं मुहब्बत के नाम करता हूँ

आज पाकिस्तान की इक शाम याद आयी बहुत
क्या ज़रूरी है कि बेटी बाप से पर्दा करे

मेरे बाजुओं में थकी थकी अभी महवे- ख़्वाब है चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रोशनी, कभी बे-चिराग़ ये घर न हो

अभी इस तरफ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
मेरा लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ

नहीं बे हिजाब2 वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर न हो
उसे इतनी गरमि – ए – शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो

कारों से झाँकते हुए ख़ुशबू के पैरहन
पैदल के वास्ते वही डीज़ल की ओढ़नी

ये आज है , त आज की चादर तलाश कर
अच्छे दिनों के वास्ते रख कल की ओढ़नी

रेशम की चादरों- सी वो चिकनी पहाड़ियाँ
कल धूप की ढलान से क्या ढलकी ओढ़नी

कोहरे की वादियों में उतरने लगी है रात
फिर सर्दियों ने ओढ़ ली कम्बल की ओढ़नी

कैसे कटेगी तन्हा – तन्हा ,
इतनी सारी उम्र पड़ी है ।

जैसे सदियाँ बीत चुकी हों ,
फिर भी आधी रात अभी है ।

कोई किसी का दर्द न जाने ,
सबको अपनी- अपनी पड़ी है ।

कोई हाथ नहीं खाली है.
बाबा ये कैसी नगरी है ।

आँसू दरिया , आँखें कश्ती मान लिया
पलकों को पतवार करेगा , चल झूटे
दिल को अब तेज़ाब से धोना पड़ता है
गंगाजल बेकार करेगा चल झूटे

इस रात की तारीकी को मिटाने की जद्दोजहद भी अब उनकी शायरी में शामिल है और
उसूल तो शामिल हैं ही जिनके तहत वे सारी दुनिया में मुहब्बतों के फूल खिलते हुए देखना
चाहते हैं । उनकी इसी ख़्वाहिश को शब्द देते हुए उनके अशआर से उनके इस परिचय को
विराम दे रहा हूँ:

पतझड़ के साथ – साथ बड़ी दूर तक गई
इस बार शाख – शाख पिरोई हुई ग़ज़ल
सोई है गहरी नींद में बेख़्वाब रेत पर
अहसास की नदी में डुबोई हुई ग़ज़ल

मन्दिर मसजिद का झगड़ा हलवा पूड़ी
पूजा दुनियादार करेगा चल झूटे
दोहों में ग़ज़लों की लटकन ठीक नहीं
लुंगी को सलवार करेगा चल झूटे

शक्ल सूरत नाम पहनावा जुबाँ अपनी जगह
फ़र्क वर्ना कुछ नहीं इन्सान और इन्सान में
इन नई नस्लों ने सूरज आज तक देखा नहीं
रात हिन्दुस्तान में है रात पाकिस्तान में

मैं जमीं ता आसमाँ वो कैद आतिशदान में
धूप रिश्ता बन गयी सूरज में और इन्सान में
कैसे दोनों वक्त गले मिलते हैं रोज़
ये मंज़र मैंने दुश्मन के नाम लिखा

उस बच्चे की कापी अक्सर पढ़ता हूँ
सूरज के माथे पर जिसने शाम लिखा ऐसा लगता है कि उसने मुझे ग़ालिब समझा
न उठाता है मुझे और न बिठाता है मुझे

कहीं और बाँट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज्जतें
मेरे पास है मेरा आईना मैं कभी न गर्द ओ गुबार लूँ
कई अनजबी तेरी राह में मेरे पास से यूँ गुज़र गये
जिन्हें देखकर ये तड़प हुई तेरा नाम ले के पुकार लूँ

उसका भी कुछ हक़ है आख़िर ,
उसने मुझसे नफ़रत की है ।
फूल दुआ जैसे महके हैं ,
किस बीमार की सुबह हुई है ।

जो कहूँगा सच कहूँगा ,
__ यही फैसला किया है
जो लिखूगा सच लिखूगा ,

बड़े ताजिरों की सताई
दुआ करो कि ये पौधा
सौ खुलूस बातों में
वो महकती पलकों की
सोये कहाँ थे आँखों ने
आँसूओं के साथ सब कुछ
कहाँ आँसुओं की ये सौगात
राहों में कौन आया
सुरज चंदा जैसी जोड़ी हम दोनों
उसकी आँखों सा उसके गेस सा

आँसुओं से धुली खुशी
मुस्कुराते रहे गम छुपाते
दिल की दहलीज़ पे यादों
हमारे हाथों में एक
मौहब्बतों में दिखावे
खुदा हमको ऐसी खुदाई
किसे ख़बर थी तझे
कोई जान न सका
हर रोज़ हमें मिलना
खुश रहे या बहुत
किसने मुझको सदा
हर बात में महके
पत्थर के जिगर वालो
दूसरों को हमारी
इस तरह दुनिया मिली
होंठों पे मुहब्बत के
सँवार नोक पलक
कोई लश्कर है कि
उदास आँखों से आँसू
आँखों में रहा दिल
चमक रही है परों में
हँसी मासूम सी
अँधेरे रास्तों में यूँ
आँधियों के साथ क्या
उनको आईना बनाया
सर पे साया सा
इक शहर था ख़राब

हमारा दिल सवेरे का
तारों भरी पलकों की
महफिलें मैकशाँ कूचए
कहीं चाँद राहों में खो गया
लहरों में डूबते रहे
रात से जी है
न जी भर के देखा
निकल आए इधर

कौन आया रास्ते
वो बुझे घरों का चराग़ था
माटी की कच्ची गागर
अच्छा तुम्हारे शहर का
आग लहरा के चली है
सर- सर हवा में सरके
यूँ ही बेसबब न फिरा करो
कोई फूल धूप की पत्तियों में

अभी इस तरफ न निगाह कर
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में
सब कुछ ख़ाक हुआ है
कभी यू मिले कोई मसहलत
आग को गुलज़ार कर दे
इबादतों की तरह
परखना मत
नाम उसी का नाम
आइना धूप का
मैं जमीं ता आसमां
दारू से इनकार करेगा
चाँदनी रात है
जागी हई ग़ज़ल
रात आँखों में ढली
सर झुकाओगे तो
उदास चाँद सितारों को
ग़ज़ल को माँ की तरह
यार कह दे
सात रंगों के
दालानों की धूप
किताबें , रिसाले न
मेरे बारे में हवाओं
मुझको अपनी नज़र
किसी की याद में
खुशबू की तरह आया
तू मुझसे तेज़ चलेगा
जब सहर चुप हो

तेरी जन्नत से हिजरत
अपनी खोई हुई जन्नतें पा
सर दर्द जैसे नींद के
अब हुई दास्ताँ
फूल सा कुछ कलाम
वक़्ते -रुख़्सत कहीं
कोई हाथ नहीं
जब तक निगाहे – रश्क
मैं ग़ज़ल कहूँ मैं ग़ज़ल पढूँ
अदब की हद में
वो नहीं मिला तो मलाल क्या
ये ख़ला है अर्शे-बरी नहीं
मेरे साथ तुम भी दुआ करो
है अजीब शहर की जिन्दगी
कभी तो शाम ढले
कहीं पलकें ओस से धो गई
कई पेड़ धूप के पेड़ थे
मैं कब तनहा हुआ था
दिखला के यही मंज़र
मेरे दिल की राख
वो शाख़ है न फूल
अच्छी आँखे सच्चे दिल
आँसुओं में रची

चल- चल के रुके, रुक रुक
तितलियों का मुझे टूटा हुआ
अजनबी पेड़ों के साये में
मैं घना अँधेरा हूँ
बेसदा ग़ज़लें न लिख
मेरी ज़िन्दगी भी मेरी नहीं
पके गेहूँ की खुशबू
बड़ी आग है, बड़ी आँच है
दिल पे छाया रहा
सरे राह कुछ भी कहा नहीं
अब तेरे मेरे बीच
वही ताज़ है वही तख़्त है

उजाले अपनी यादों के
कई सितारों को मैं
दुश्मनी जम कर करो
लोग टूट जाते हैं
दुश्मनी का सफर इक
कोई हाथ भी न मिलायेगा
कुछ तो मजबूरियाँ
उतर भी जाओ कभी
अगर हम साहिलों पे
औराक़ में छुपाती थी
आख़िर ग़ज़ल का ताजमहल
गुज़ारे हमने कई साल

हमसफ़र ने मेरा साथ
गर्म कपड़ों का सन्दूक मत
ऐसा लगता है हर
अब यहाँ प्यासे परिंदे
प्यार पंछी, सोचपिंजरा ,
मैं कब कहता हूँ
ख़त में बारिकियाँ चमकती हैं
शे र मेरे कहाँ थे
सर पे साया सा
मुस्कुराती हुई धनक
आस होगी न
राहों में कौन आ गया
चरवाहा भेड़ों को लेकर

अब हम इस 2 line love shayari urdu शायरी संग्रह के अंत में आ गए आशा करते की शायरी संग्रह से आपकी जब दिल के जख्म को राहत मिलेगी यह 2 line love shayari urdu, rahat indori shayari in hindi, rahat indori love shayari, rahat indori shayri शायरी संग्रह लोकप्रिय शायर राहत इंदौरी साहब द्वारा लिखी गई थी ओके देना कि आदमी चला जाता है अल्फा छूट जाते हैं विचार छूट जाते इसी तरह राहत इंदौरी साहब ने शायरी तो और अपने आत्माएं आपके छोड़ दिया

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